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कक्षा 12 इतिहास क्वेश्चन आंसर
प्रश्न 1. अशोक महान की जीवनी तथा उसके उपलब्धियों का वर्णन करे ?
उत्तर – अशोक महान मौर्य सम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक हुआ, अशोक 269 ई. में मगध की गदी पर बैठा जो 232 ई. तक रहे अशोक को राजग्दी उसके पिता बिन्दुसार के मरने के बाद मिला, अशोक ने 261 ई. में कलिंग की लड़ाई लड़ी जिसमे हजारो लोगो मरे गए, इस हिंसा के बाद अशोक बौद्ध धर्म को अपना लिया तथा हिंसा न करने की कसम खाई |
अशोक की उपलब्धियाँ :- बिन्दुसार के मुत्यु के बाद अशोक मगध प्रदेश के राजा बना अशोक को राजा बनने के लिए कई लडाईया लडनी पड़ी, वे अपने राज्य का काफी विस्तार किया कलिंग युद्ध का प्रभाव अशोक के धार्मिक विचारो पर पड़ा, वे जनता के कल्याण के लिए कई योजनाओं को चलाया, जैसे सडक के किनारे कुने खुदवाई छायादार, फल के पेड़ लगवाए मनुष्य के इलाज के लिए अस्पताल बनवाएं , उन्होंने अपने राज्य में शांति स्थापना के लिए कई तरह की निति अपनाए उन्होंने जनता के लिए कई तरह के और कानून बनवाएं सचमुच वे महान राजा थे |
प्रश्न 2.अलबरूनी की जीवनी तथा उनके समय में वर्ण व्यवस्था जाती व्यवस्था एवं आश्रम व्यवस्था पर विचार लिखे ?
उत्तर – अलबरूनी का पूरा नाम अल्बू रेहान मुहम्मद युवन अहमद था, इनका जन्म 973 ई. में इरान में हुआ था, 1017 ई. में मुहम्मद गजनी नए रत्वाजिम पर आक्रमण कर उसने अपने अधिकार में ले आया उनमे अलबरूनी भी एक था, अलबरूनी को बंदी बना कर लाया था गजनी में रहते हुए, अलबरूनी बहुत से किताबो को कई भाषाओ में अनुवाद किया, अलबरूनी को गजनी में काफी मान सम्मान मिला इन्होने अरबी भाषा में कई पुस्तके लिखी, उनमे से किताबे उल्ल हिन्द एक था 70 वर्ष की अवस्था में उनकी मुत्यु हो गई, उनके द्वारा डी गई वर्ण व्यवस्था को चार भागो में बांटा हुआ था |
क. शासक वर्ग
ख. पुरोहित वर्ग
ग. खगोल शास्त्री तथा वैज्ञानिक वर्ग
घ. किसान वर्ग
क. शासक वर्ग
ख. पुरोहित वर्ग
ग. खगोल शास्त्री तथा वैज्ञानिक वर्ग
घ. किसान वर्ग
उस समय के समाज में जाती को भी चार वर्गों में बाटा गया था जो कर्म के आधार पर थे |
क. ब्राह्मण :- पूजा पाठ कराने वाला
ख. क्षत्रिय :- देश की रक्षा करने वाला
ग. वैष्णव / वैशव:- बिजनस व्यापार करने वाला
घ. शुद्र :- राजा और प्रजा की सेवा करने वाला यानी नौकर
ख. क्षत्रिय :- देश की रक्षा करने वाला
ग. वैष्णव / वैशव:- बिजनस व्यापार करने वाला
घ. शुद्र :- राजा और प्रजा की सेवा करने वाला यानी नौकर
अलबरूनी ने भारतीय समाज के आश्रम व्यवस्था को भी बताया ये आश्रम व्यवस्था निम्न है |
क. ब्रह्मचर्य आश्रम :- 8 वर्ष से 25 वर्ष तक
ख. गुह्स्त आश्रम :- 25 वर्ष से 50 वर्ष तक
ग. वान प्रस्त आश्रम :- 50 वर्ष से 75 वर्ष तक
घ. सन्यास आश्रम :- 75 वर्ष से मरने तक
ख. गुह्स्त आश्रम :- 25 वर्ष से 50 वर्ष तक
ग. वान प्रस्त आश्रम :- 50 वर्ष से 75 वर्ष तक
घ. सन्यास आश्रम :- 75 वर्ष से मरने तक
प्रश्न 3.इब्तबतूता की जीवनी तथा सती प्रथा दास प्रथा बाजार प्रणाली तथा डाल प्रणाली पर उनके विचार को लिखे ?
उत्तर – अलबरूनी के बाद भारत आने वाला दूसरा विख्यातः विदेशी यात्री इब्तबतूता था, उनका वास्तविक नाम अब्दुला मुहम्मद था, इनका जन्म 24 फरवरी 1304 ई. में मोरक्को में हुआ था, इनका परिवार शिक्षित एवं प्रतिष्ठित था, यह परिवार इस्लामी कानून का जानकारी के लिए विख्यातः था, इब्नबतूता को विदेश की यात्रा करने में मन लगता था, इसलिए 22 वर्ष की अवस्था में वह घर को छोड़कर 14 जून 1325 ई. में लम्बे विदेश की यात्रा पर निकल पड़े | 1333 ई. से इब्नबतूता भारत के सिंध प्रान्त में पहुंचा, उस समय भारत का राजा मोहम्मद विन्तुगलक था, उसके विचारो से तुगलक काफी प्रभावित हुआ प्रभवित होकर तुगलक नए इब्नबतूता को दिल्ली का काजी न्युक्त कर दिया, इन्होने अरबी भाषा में रेहला नामक एक पुस्तक लिखा |
सत्ती प्रथा पर इब्नबतूता का कहना था, की उस समय किसी के पति के मर जाने पर पत्नी भी पति को गोद में लेकर चिता में बैठ जाती थी, और पति के साथ पत्नी भी जल जाती थी , दास प्रथा पर इब्नबतूता का कहना है, की उस समय दासो की खरीद बिक्री होती थी अच्छे घराने में दास बनाने की प्रथा प्रचलित थी, मालिक दास को काफी सताते थे , बाजार व्यवस्था पर इब्नबतूता का कहना था, इस समय प्रत्येक नगर में बाजार हुआ, करता था, बाजार में कई तरह के दुकाने होती थी, दूकान में देशी और विदेशी दोनों समान मिलते थे ,डाक व्यवस्था पर इब्नबतूता का कहना था , उस समय डाक का प्रयोग सिर्फ सरकारी काम कार्य के लिए होता था, परन्तु इसका असर व्यापार पर भी पड़ता था |
सत्ती प्रथा पर इब्नबतूता का कहना था, की उस समय किसी के पति के मर जाने पर पत्नी भी पति को गोद में लेकर चिता में बैठ जाती थी, और पति के साथ पत्नी भी जल जाती थी , दास प्रथा पर इब्नबतूता का कहना है, की उस समय दासो की खरीद बिक्री होती थी अच्छे घराने में दास बनाने की प्रथा प्रचलित थी, मालिक दास को काफी सताते थे , बाजार व्यवस्था पर इब्नबतूता का कहना था, इस समय प्रत्येक नगर में बाजार हुआ, करता था, बाजार में कई तरह के दुकाने होती थी, दूकान में देशी और विदेशी दोनों समान मिलते थे ,डाक व्यवस्था पर इब्नबतूता का कहना था , उस समय डाक का प्रयोग सिर्फ सरकारी काम कार्य के लिए होता था, परन्तु इसका असर व्यापार पर भी पड़ता था |
प्रश्न 4.फ़्रांसिसी बर्नियर की जीवनी तथा उसके उप्ल्ब्धियाओ का वर्णन करे ?
उत्तर – यूरोप के यात्रियों नए 16 वी शताब्दी में भारत आना शुरू किया, इन यात्रियों में फ़्रांसिसी बर्नियर प्रमुख था, ये एक कुशल चिकित्सक के साथ साथ एक प्रशिद्ध इतिहासकार भी थे, बर्नियर मुग़ल बादशाह शाहजाहाँ के शासन काल में भारत आया था, वह मुग़ल दरबार का एक डॉक्टर था, और उसने अपनी गहरी पैट इस राज दरबार में बना लिया था , बर्निय नए पाने पुस्तक में लिखा था, उस समय मुग़ल सम्राज्य रानीतिक उथल पुथल से भर हाथ शाहजाहाँ के चार पुत्र थे, दारा, सुज्जा ,औरंगजेब और मुराद ,उनके चारो पुत्रो के बिच राज गद्दी के लिए बराबर युद्ध हिते रहता था, इन चारो पुत्रो में औरंग्जेब सबसे शक्तिशाली था, इसलिए सत्ता उसी के हाथ लगी बर्नियर भारत के बिभिन्न भागो तथा नागोरो की यात्रा की जैसे अहमद नगर आगरा, दिल्ली ,सुरत ,कश्मीर तथा बंगाल आदि, जहाँ जहाँ वह गया मुग़ल की सेना उसके साथ थी ट्रेभ्ल्स इन द मुग़ल इम्पायर पुस्तक में बर्नियर नए अपनी यात्रा वितांत को लिया, यह यात्रा 1602 ई. में फ़्रांस में प्रकाशित हुआ, इस पुस्कत को फ़्रांस के राजा लुई 14 वे को समर्पित किया गया |
प्रश्न 5.कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियों का वर्णन करें ?
उत्तर – दिल्ली सल्तनत के तहत गुलाम वंश स्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक को माना जाता है, कुतुबुद्दीन ऐबक भारत का पहला ऐसा मुस्लिम शासक था, जिसने भारत में मुसलमानों के लिए एक स्वतंत्र राज्य स्थापित किया, इन्होंने मुसलमानों के भलाई के लिए ढेर सारे काम किए उनका जन्म तुर्किस्तान के कॉलिंग वंश में हुआ था, इनको बचपन में एक व्यापारी के हाथों बेच दिया गया था, और ए व्यापारी इसे दास या गुलाम के रूप में काम कर आते थे, व्यापारी के यहां से कुतुबुद्दीन ऐबक को निशा पुर के कानी ने खरीद लिया, कुतुबुद्दीन ऐबक किताबे लिखने में तेज था, इसके विलक्षण प्रतिभा को देखकर निसपुर के काजी ने इसके लिए शिक्षा दीक्षा का समुचित व्यवस्था किया, काजी अपने बेटे की तरह उसे मानता था, और उसके अपने पुत्रों के साथ धार्मिक एवं शैक्षणिक प्रतिभा देता था, लेकिन जब काजी की मृत्यु हो गई, तो उनके उत्तराधिकारी ने कुतुबदीन ऐबक को गजनी ले गया, और मोहम्मद गौरी के हाथों फिर इसको बेच दिया, ऐबक सर्वगुण में सम्पन्न था कुछ ही दिनो में मोहम्मदगोरी के दिल को जीत लिया, और सबसे बड़ा विश्वास पात्र बन गया गौरी कुतुबद्दीन ऐबक के गुण को देखकर उसे ऐबक की उपाधि दे दी ऐबक का अर्थ होता है, चंद्रमुखी बाद में ऐबक गौरी के सेना का उत्तराधिकारी बन गया और गौरी के मरने के बाद दिल्ली सल्तनत का राजा बन गया |
प्रश्न 6.विजय नगर साम्राज्य की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन करें ?
उत्तर – विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत पहला राजवंश संगम राजवंश था, संगम के बाद सुलभ राजवंश का शासन सुलभ राजवंश के बाद तुलुव राजवंश का स्थापना हुई, और इसी तुलूव राजवंश के प्रतापी राजा कृष्णदेव हुए विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत सांस्कृतिक विकास काफी युवा इस समय मंदिरों का विकास काफी तेजी से हुआ मंदिरों में गोपुरम का निर्माण कराया गया, इसी समय जितने भी निर्माण कार्य हुए, उन सभी निर्माण कार्य में सुंदर-सुंदर नक्शी किए गए, इस निर्माण में ग्रेनाइट पत्थर का उपयोग किया गया, मंदिरों के कुछ और स्तंभों पर मूर्तियां बनाई गई | इस तरह हम देखते हैं, कि विजयनगर कलाकृति तथा उसकी सांस्कृतिक उपलब्धियों में काफी विकसित तथा प्रशांसा जनक था, उस समय जो की कलाकृतियां होती थी, वह काफी मजबूत होती थी जो आज भी हमारे सामने मौजूद है, विजयनगर की एक सुंदर इमारत कमल महल है, जो बिल्कुल कमल की तरह खिला हुआ है |
प्रश्न 7.अबुल फजल के अकबरनामा या आईने अकबरी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ?
उत्तर – मुगल साम्राज्य में अकबरनामा पुस्तक के लेखक अबुल फजल थे यह पुस्तक काफी चर्चित थी, यह पुस्तक तीन भागों में बांटा था, प्रत्येक भाग 150 पृष्ठ का था, इस पुस्तक में अकबर के बारे में सारी बातें लिखी गई थी, जैसे अकबर के द्वारा लड़े गए युद्ध घेराबंदी शिकार निर्माण तथा राजा के दरबार आदि, अबुल फजल का लालन-पालन आगरा में हुआ था, वह अरबी फारसी यूनानी भाषा के विद्वान थे, अकबर के दरबार में नौ रत्नों में से एक थे, तथा अकबर के प्रमुख सलाहकार थे, अकबर के आदेश पर ही 1579 ईस्वी में अबुल फजल ने अकबर नामा लिखना शुरू किया, वह 15 वर्ष में लिखकर पूरा किया अकबरनामा तीन भागों में विभाजित था, प्रथम भाग अकबर के इतिहास के बारे में था, तथा दूसरा और तीसरा भाग अकबर के युद्ध के बारे में बताया गया था |
प्रश्न 8.मुगल काल की जमीदारी प्रथा या जमींदारों की स्थिति का वर्णन करें ?
उत्तर – अबुल फजल के ग्रन्थ आइन ए अकबरी से मुगलकाल में प्रचलित जमींदारी प्रथा की जानकारी मिलती है, जमींदारी प्रथा उस समय प्रायः उच्ची जाती के लोगो में होते थे, उच्ची जाती के लोग समाज में अपना पकड़ बना लेते थे, जमींदारो की अपनी जमीन मलकियत होती थी, जमींदार राजा की ओर से अपने क्षेत्र की किसानो से भू-स्वराज वसूलते थे, जमींदार का बेटा ही जमींदार होता था, यह जमींदारी पद वंशानुगत होता था, इस कार्य को करने के लिए जमीदार को 10% हिस्सा मिलता था, जमींदार अपनी मलकियत से जमीन को बेच भी सकते थे | जमींदार के पास सैनिक होती थी, घुड़सवार , तोपखान , पैदल सिपाही आदि होते थे, इससे पता चलता था की जमींदार बहुत शक्तिशाली होते थे |
प्रश्न 9.प्लासी युद्ध के कारणों एवं परिणामो का वर्णन करे ?
उत्तर – 1757 ई. में अंग्रेजो एवं बंगाल के नबाब सिराजु दौला के बिच प्लासी के मैदान में युद्ध हुआ था, जिसके निम्नलिखित कारण है जो इस प्रकार से है :-
क. अंग्रेजो के कुचक या शोसन के कारण प्लासी का युद्ध हुआ था, अंग्रेजो नए बंगाल कप अपना पहला कारखाना 1633 ई. में खोला बाद में हुगली ढाका तथा काशी बाजार में कारखाने स्थापित किए, अग्रेज सिर्फ अपने हित के बात देखता था वह बंगाल के जनता पर ध्यान नहीं देता था |
ख. जब अंग्रेज नए कलकता की किलाबंदी कर नबाबो के आदेश का उलंघन किया, तो सिराजुद्दौला नए काशी बाजार अंग्रेज के कारखानों को जब्त कर लिया, जिसके कारण प्लासी की लड़ाई लड़ी गई |
ग. काल कोठरी को घटना के कारण भी प्लासी की लड़ाई लड़ी गई, इस घटना के बारे में कहा जाता है, एक छोटे से कमरे में अंग्रेजो नए 146 भारतीय को बंद करके रखा था, जिसमे से 123 बंदियों को डीएम घुटने के कारण मुत्यु हो गई, और सिर्फ 23 ही बचे |
प्लासी युद्ध के परिणाम निम्नलिखित थे जो इस प्रकार से है :-
क. इस युद्ध के बाद अंग्रेजो नए व्यापरियों को शासक बना दिया, जिससे व्यापरियों का हौसला और बढ़ गया |
ख. मिर्जफर ने गुप्त संघियों के द्वारा अंग्रेजी कम्पनी के सभी विशेष अधिकार सुरक्षित कर दिया |
ग. मिर्जफर तथा इसके साथियो नए जो कुछ भी किया उसे महा विश्वास घट कहा गया यह व्यक्तिगत स्वार्थ का संघर्ष था |
ख. मिर्जफर ने गुप्त संघियों के द्वारा अंग्रेजी कम्पनी के सभी विशेष अधिकार सुरक्षित कर दिया |
ग. मिर्जफर तथा इसके साथियो नए जो कुछ भी किया उसे महा विश्वास घट कहा गया यह व्यक्तिगत स्वार्थ का संघर्ष था |
प्रश्न 10.मुग़ल सम्राज्य की मंसबदारी प्रथा आथवा अकबर की मंसबदारी प्रथा की विशेषताओं का वर्णन करे ?
उत्तर – मनसबदारी प्रथा मुगल साम्राज्य में सेना से संबंधित शब्द है, लेकिन मनसबदारी प्रथा और सैनिक अधिकारों को भी मिला हुआ था, वैसे तो मनसब अरबी भाषा से लिया गया शब्द है, जिसका अर्थ होता है, उपाधि से किसी व्यक्ति को सम्मानित करना मनसबदारी प्रथा अकबर के समय में काफी प्रचलित था, अकबर अपने सैनिक को इज्जत प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए उसे मनसब देता था, और जो मन सब लेता था, उसको मनसबदार कहा जाता था, और ये पूरा प्रथम मनसबदारी प्रथा कहलाता था |
इसकी निम्नलिखित विशेषताएं थी जो इस प्रकार से है:-
क. जो मनसबदार जितना अच्छा कार्यकर्ता था, उसको उतना अच्छा वेतन मिलता था |
ख. मुगल राजा स्वयं मनसबदारो को नियुक्त करता था, तथा उसको हटा भी सकता था |
ग. किसी मनसबदार को सैनिक कार्य में लगाया जाए, या असैनिक कार्य में लगाए जाइए यह बात राजा पर निर्भर करता था |
घ. अगर एकाएक किसी मनसबदार की मृत्यु हो जाती थी, तो ऐसी स्थिति में राजा उसकी मनसब को जप्त कर के दूसरे व्यक्ति को दे देता था |
ङ. मुगल साम्राज्य में पठान तुर्क राजपूत आदि जितने भी होते थे , वे सब के सब में मनसबदारों के नियंत्रण में ही रहते थे |
इसकी निम्नलिखित विशेषताएं थी जो इस प्रकार से है:-
क. जो मनसबदार जितना अच्छा कार्यकर्ता था, उसको उतना अच्छा वेतन मिलता था |
ख. मुगल राजा स्वयं मनसबदारो को नियुक्त करता था, तथा उसको हटा भी सकता था |
ग. किसी मनसबदार को सैनिक कार्य में लगाया जाए, या असैनिक कार्य में लगाए जाइए यह बात राजा पर निर्भर करता था |
घ. अगर एकाएक किसी मनसबदार की मृत्यु हो जाती थी, तो ऐसी स्थिति में राजा उसकी मनसब को जप्त कर के दूसरे व्यक्ति को दे देता था |
ङ. मुगल साम्राज्य में पठान तुर्क राजपूत आदि जितने भी होते थे , वे सब के सब में मनसबदारों के नियंत्रण में ही रहते थे |
प्रश्न 11.मुगल साम्राज्य की राजस्व प्रणाली का वर्णन करें अकबर के भूमि कर प्रणाली पर प्रकाश डालें ?
उत्तर –मुगल साम्राज्य का आर्थिक सुधार भूमि स्वराज प्रणाली था, भूमि स्वराज को वसूलने के लिए मुगल साम्राज्य में एक और प्रशासनिक व्यवस्था होती है, कि संपूर्ण मुगल साम्राज्य की वित्तीय व्यवस्था के देखभाल के लिए चार दीवान की व्यवस्था होती थी, और एप्पल गुजार अधिकार होते थे, मुगल साम्राज्य में स्वराज के निर्धारण के पहले अधिकारी देखता था, कि जमीन किस प्रकार का है, या जमीन उपजाऊ है, या बंजर भूमि उपजाऊ है तो उस पर कर लगाया जाता था, मुगल काल में अच्छी जमीन होती थी, जिसमें सभी प्रकार के कोई भी फसल होते रहते थे, मुगल काल में स्वराज के रूप में निर्धारित रकम को जमा किया जाता था, भूमि स्वराज को वसूलने वाले अधिकारी को अपील गुजार कहा जाता था, भूमि स्वराज नगदी फसल के रूप में दी जाती थी, अकाल पड़ने की स्थिति के बाद भूमि स्वराज की वसूली नहीं की जाती थी |
प्रश्न 12.मुगल प्रशासन पर एक टिप्पणी लिखें ?
उत्तर – जैसे की हम सभी जानते हैं कि मुगल साम्राज्य की स्थापना बाबर के द्वारा 1526 में की गई थी, और 1707 में औरंगजेब के मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का पतन होने लगा, इतने वर्षों के बीच में मुगल साम्राज्य में जितने भी राजा हुए, वह सब अपने अपने ढंग से राज्य को चलाया अकबर महान की प्रशासनिक व्यवस्था बहुत अजीब लेकिन काफी लोकप्रिय थी, जबकि औरंगजेब की शासन व्यवस्था लोकप्रिय नहीं थी, मुगल काल की प्रशासनिक व्यवस्था नौकरशाही व्यवस्था पर आधारित मुगल के प्रशासन में वजीर दीवान काजी आदि के द्वारा शासन चलाया जाता था |
अतः मुगल साम्राज्य की प्रशासन की निम्नलिखित विशेषताएं थी जो इस प्रकार से है:-
क. मुगल साम्राज्य कई छोटे-छोटे भागों में विभाजित था, जिसे प्रांत कहा जाता था और प्रांत के प्रधान को सूबेदार कहा जाता था |
ख. प्रांत को कोई भागों में बांटा गया था , जिस को चलाने के लिए एक विशाल नौकरशाही की व्यवस्था होती थी|
ग. राज्य व प्रांतों की सुरक्षा के लिए एक विशाल सेना होती थी, जिसमें घुड़सवार और फौज भी होता था |
घ. गांव की शासन को चलाने के लिए स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था होती थी |
ङ. मुगल साम्राज्य की सभी काम फारसी भाषा में होते थे |
ख. प्रांत को कोई भागों में बांटा गया था , जिस को चलाने के लिए एक विशाल नौकरशाही की व्यवस्था होती थी|
ग. राज्य व प्रांतों की सुरक्षा के लिए एक विशाल सेना होती थी, जिसमें घुड़सवार और फौज भी होता था |
घ. गांव की शासन को चलाने के लिए स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था होती थी |
ङ. मुगल साम्राज्य की सभी काम फारसी भाषा में होते थे |