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Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 1 मङ्गलम् Subjective, |
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पाठ – 1 संस्कृत मङ्गलम्
[ अर्थ स्पष्ट करे ]
1. हिरण्मयेन पात्रेण . . . . . . . . . . दृष्टये |
अर्थ :- इस श्लोक में कवी व्यास जी सत्य धर्म की प्राप्ति के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहते है, की इस संसार में जिस प्रकार किसी बर्तन का मुख सोने के ढक्कन से ढके होने पर व्यक्ति उस पात्र के प्रति आकर्षित न मोहित हो जाता है,, और अपने धर्म पथ को भूल जाता है,, उसी प्रकार इस संसार में सत्य और धर्म का मुख सांसारिक मोहमाया रूपी सोने के आवरण से ढका हुआ है |
2. अणोरणीयान् महतो . . . . . . . . धातुप्रसादान्महिमा |
अर्थ :- इस श्लोक मे कवि वेदर्षि व्यास जी आत्मा के बारे मे बताते हुए कहते है, कि सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म और महान से भी महान यह आत्मा जिव – जन्तुओ के हृदय रूपी गुफा में छुपा हुआ है,, इसे वही जानता या देखता है,, जो अज्ञानता को दूर कर शोक से रहित है,, वह व्यक्ति परमात्मा की कृपा प्राप्त कर अपने जीवन को सफल कर लेता है |
3. सत्यमेव जयते . . . . . . . . पर निधानम् ||
अर्थ :- इस श्लोक में कवी वेदर्षि व्यास जी यह कहते है, की ही जीत होती है, असत्य की नहीं | सत्य के मार्ग से ही हम देव तक पहुँच सकते है,, क्योकि प्राचीन काल में ऋषि – मुनि लोग भी ईश्वर की प्राप्ति के लिए सत्य के मार्ग का ही सहारा लेते थे,, यही मार्ग ईश्वर की प्राप्ति का सर्वश्रेष्ट मार्ग है |
4. यथा नघ : . . . . . . . दिव्यम् ||
अर्थ :- इस श्लोक में कवी वेदर्षि व्यास जी यह कहना चाहते है, की जिस प्रकार नदियाँ अपनी नामो को छोड़कर समुन्द्र में विलीन हो जाती है,, ठीक उसी प्रकार विद्वान लोग भी अपनी नामो को गवाँकर परमात्मा में विलीन हो जाते है,, तथा वह परमात्मा के रूप को प्राप्त कर लेते है |
5. वेदाहमेत पुरुषं महान्तम् . . . . . . . . . पिघेत डयनाया ||
अर्थ :- इस श्लोक के माध्यम से कवी वेदर्षि व्यास जी यह कहना चाहते है,, की वेद के प्रकाश से ही व्यक्ति विद्वान बनता है, सूर्य के प्रकाश के समान वेद से भी ज्ञान रूपी प्रकाश निकलता है,, जिस प्रकार सूर्य की किरणे अंधकार को हरा कर हमें प्रकाश देती है, ठीक उसी प्रकार वेद से ज्ञान लेने वाला व्यक्ति असत्य रूपी अंधकार से सत्य रूपी प्रकाश की और आगे बढ़ते है,, क्योकि मृत्यु का द्वार ही सत्य का द्वार है |
[ पठित पाठ के आधार पर ]
1. आत्मा का स्वरूप क्या है ? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करे ?
उत्तर – आत्मा मनुष्य की हृदय रूपी गुफा में अवस्थित है, यह अणु से भी सूक्ष्म होता है,, यह महान से भी महान है,, इसका रहस्य समझने वाला सत्य की खोज करता है,, वह शोकरहित होता है |
2. मङ्गलम् पाठ का परिचय पांच वाक्यों में दे ||
उत्तर – इस पाठ में पांच मंत्रो का महत्व दिया गया है, इन्हें पढ़ने से परम सत्य के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है,, सत्य के खोज की प्रवृति होती है,, तथा अध्यात्मिक खोज के प्रति उत्सुकता होती है |
3. महान लोग संसार रूपी सागर को कैसे पार करते है ?
उत्तर – कवि वेदर्षि व्यास जी अज्ञानी लोगो को अंधकार स्वरूप और ज्ञानी लोगो को प्रकाश स्वरूप कहते है,, महान लोग इसे समझकर मृत्यु को पार कर जाते है,, क्योकि संसार रूपी सागर को पार करने का इससे बढ़कर एनी कोई रास्ता नहीं है |
4. विद्वान पुरुष ब्रह्मा को किस प्रकार प्राप्त करते है ?
उत्तर – मुंडकोषनिषद में वेदर्षि वेद – व्यास जी कहते है, की जिस प्रकार बहती हुई नदियाँ अपने नाम और रूप को त्यागकर समुन्द्र में मिल जाती है,, ठीक उसी प्रकार महान पुरुष अपनी नाम और रूप अर्थात अहम को त्यागकर ब्रह्मा को प्राप्त कर लेते है |
5. मङ्गलम् पाठ के आधार पर सत्य की महत्ता पर प्रकाश डाले ?
उत्तर – सत्य की महत्ता का वर्णन करते हुए वेदर्षि वेद – व्यास कहते है,, की हमेशा सत्य की ही जीत होती है,, झूठ कभी भी नहीं जीतता है,, सत्य से ही देवलोक का रास्ता मिलता है,, मोक्ष प्राप्त करने वाले ऋषि लोग सत्य को प्राप्त करने के लिए ही देवलोक जाते है,, क्योकि देवलोक सत्य का खजाना है |
6. मङ्गलम् पाठ के आधार पर आत्मा की विशेषता बताइए ?
उत्तर – आत्मा के बारे में वेदर्षि वेद – व्यास कहते है,, की आत्मा प्राणियों के हृदय रूपी गुफा में बंद है,, यह सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और महान से भी महान है,, इस आत्मा को वश में नहीं किया जा सकता है,, विद्वान लोग शोक रहित होकर परमात्मा का दर्शन करते है |
7. उपनिषद् को आध्यात्मिक ग्रन्थ क्यों कहा गया है ?
उत्तर – उपनिषद् एक आध्यात्मिक ग्रन्थ है,, क्योकि यह आत्मा और परमात्मा के संबंध के बारे में विस्तृत व्याख्या करता है,, परमात्मा सम्पूर्ण संसार में शांति स्थापित करते है,, सभी तपस्वियों का परम लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त करना ही है |