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Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 3 अति सूधो स्नेह को मारग Bihar Board
पाठ – 3
लेखक – घनानंद
शीर्षक – अति सूधो स्नेह को मारग
जन्म – 1689 में
मृत्यु – 1739 में
प्रश्न 1. अति सूधो स्नेह को मारग है ? जहाँ देहु छटाक नहीं ?
उत्तर – कवि घनानंद जी इस दोहे में कहते है | की प्रेम का मार्ग अति सीधा वे सुगम होता है | इसमें किसी भी प्रकार का छल कपट नहीं चलता है | इस मार्ग पर वाही व्यक्ति चल सकता है | जिसका ह्रदय निर्मल और पवित्र होता है | कवि घनानंद जी कहते है | की प्यारी सुजान सुनो हम लोगो में एक दुसरे को अंका नहीं है | तुमने कौन ऐसा पाठ पढ़ा है | की जिससे तुम्हारा मन भर गया है | मुझको सदा के लिए छोड़ दिया है \ इसलिए सुजान मेरे ऊपर कृपा करो और मेरी बातो पर विश्वास करो |
प्रश्न 2. पर का जाहि देह को लै बरसौ ?
उत्तर – इस दोहे में कवि घनानंद जी कहते है | की दुसरे के उपचार के लिए शरीर धारण करके बादल के सामन घुमा करो और दर्शन दो | समुन्द्र के जल को अमृत के समान बना दो | तथा सभी प्रकार से पानी सज्जनता का परिचय दो | कवि घनानंद जी का अनुरोध है | की उनकी ही दे | पीड़ा का अनुभव करते हुए | उनके जीवन में प्रेम स्नेह का रस भर दो | ताकि वह कभी अपनी प्रेमिका सुजान के आँगन में उपस्थित होकर अपनी प्रेम आंसू की वर्षा कर सके |
प्रश्न 3. कवि प्रेम मार्ग को अतो सूधो क्यों कहता है | इस मार्ग की विशेषता क्या है ?
उत्तर – कवि प्रेम मार्ग को अति सूधो इसलिए कहा है | क्योकि यह मार्ग और सहज सरल सीधा तथा शुभ होता है | इस मार्ग की यही विशेषता है | की इस मार्ग में किसी प्रकार का छल कपट नहीं होता है |
प्रश्न 4. मन लेहु पै देहु छटांक नहीं से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – कवि कका यही अभिप्राय है | की प्रेमी सच्चे दिल से अपना – तनमन प्रेमिका के लिए आपूर्ति कर देता है | लेकिन प्रेमिका उस प्रेमी को थोडा सा भी अपने दिल का प्यार निछावर नहीं करती है | अपनी मुस्कुराहट से थोड़ी सी भी दया का शांति नहीं देती है | बल्कि प्रेमिका का दिल पत्थर जैसा कठोर है |
प्रश्न 5. द्वितीय छंद किससे सम्बोधित है ? और क्यों ?
उत्तर – द्वितीय छंद में मेघ के माध्यम से कवि नए वेदना भरे अपने ही ह्रदय की पीड़ा को व्यक्त किया है | कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान का प्रेम पाने के लिए वाकुल है | कवि सुजान से बहुत ज्यादा प्रेम करते है | और इस को पाने के लिए मेघ के माध्यम से अपनी हार्दिक विशेषता प्रकट करते है | और कहते है की हे मेघ आप तो की भलाई के लिए बादल रूपी शरीर धारण करके सम्पूर्ण संसार में बरस कर उसे जीवन प्रदान करते है | इसलिए हे मेघ मेरी वेदनाओं को समझो और मेरी प्रेमिका सुजान की आँगन में मेरी ही आंसू को पहुँचाने का काम करो |
प्रश्न 6. परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है | स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर – परोपकारी दुसरे के लिए देह धारण करते है | और वे दुसरे के लिए ही जीते है | कवि परोपकारी की तुलना बादल और वृक्ष और नदी से करते है | की जिस प्रकार बादल दुसरे के जीवन के लिए यानी भलाई के लिए बरसता है | तथा नदी स्वयं अपना जल नहीं पिती है | और वृक्ष स्वयं अपना फल नहीं खाता है | ठीक उसी प्रकार परोपकारी व्यक्ति भी अपने हित के लिए कोई कार्य नहीं करते है | बल्कि हमेशा दुसरे के लिए कार्य करते है |
प्रश्न 7. कवि कहाँ अपने आंसुओ को पहुंचाना चाहते है ? और क्यों
उत्तर – कवि अपने आंसुओ को अपनी प्रेमिका सुजान के पास उसके आँगन में पहुंचाना चाहते है | क्योकि इस आंसू को पहुँचाने से सुजान हमारे दिल की पीड़ा को समझेगी | और उसे स्वीकार करके मुझे जीने का अधिकार दे देगी |
प्रश्न 8. व्याख्या करे ?
क. यह एक तै दुसरौ आंक नाहीं ?
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक हिंदी पाठ्य के काव्यखंड के शीर्षक से लिया गया है | जिसके लेखक घनानंद जी है | वह इस पंक्ति के माध्यम से यह बताना चाहते है की प्रेमिका सुजान यहाँ पर एक और दुसरे का भेद्भाव नहीं होता है | प्रेम का मार्ग पर चलने वाले दो प्रेमी हृदय से एक होते है | उसको अलग सम्बोधित करने के लिए कोई अनेक नाम नहीं हिता है | अतः कवि घनानंद जी इस पंक्ति के माध्यम से अपनी प्रेमिका सुजान को प्रेम के स्वभाव के संबंध को समझाने का हार्दिक प्रयास किए है |
ख. कछु मरियौ पीर हिए परसौ ?
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक हिंदी पाठ्य के काव्यखंड के शीर्षक से लिया गया है | जिसके लेखक घनानंद जी है | वह इस पंक्ति के माध्यम से यह बताना चाहते है की प्रेमिका सुजान सुनो जिस प्रकार बादल अपनी अमृत जल की वर्षा कर सबको जीवन देता है | उसी प्रकार से घनानंद भी तुम्हे आनंद देने वाला है | इसीलिए तुम मेरी हृदय की प्रेम पीड़ा को समझो | और मेरे ह्रदय को प्रेम से स्पर्श कर लो | ताकि मेरा जीवन सफल हो जाए |
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