Bihar Board Class 12th Geography प्राथमिक क्रियाएँ

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Bihar Board Class 12th Geography Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ Subjective


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1.     भारत के आर्थिक विकास में सडको को महत्व बतावे ?

उत्तर – भारत एक विशाल एवं कृषि प्रधान देश है गावो का देश होने के कारण यहाँ सड़को का विशेष महत्व है | सडको के महत्व का उल्लेख करते हुए बेन्थम नए कहा था की सड़के किसी देश के रक्त वाहिनी धमनी और शीशे है | जिनमे होकर प्रत्येक सुधर प्रवाहित होता है |
श्स्विन के शब्दों में राष्ट्र की सारी समाजिकता आर्थिक प्रभाव सडको के निर्माण में निहित है | सडको का महत्व निम्न प्रकार से प्रस्तुत है –

क.  आर्थिक महत्व :- सडक मार्गो में कृषि की सर्वधिक लाभ होता है | सडको द्वारा खेतो तक सभी आवश्यक वस्तुओ  को पहुचना आसान था एवं खेतो से पैदा की जाने वाली वस्तुएँ घर तथा खपत क्षेत्रो तक पहुचाई जा सकती है | सडको के द्वारा शीघ्र खराब होने वाली बीजो को दुरी तक भेजा जा सकता है | अतः इसका व्यापारिक महत्व बढ़ जाता है |

ख.  उधोग धंधे :- उधोग धंधो के लिए सडको का विशेह्स महत्व है क्योकि इनके द्वारा ग्रामीण क्षेत्रो से कच्चा माल औधोगिक क्षेत्रो में लाया जाता है | तथा तैयार माल उपभोक्ता तक पहुंचाया जाता है | जिन क्षेत्रो में परिवहन के उच्च साधन नहीं है | वहां पर इनके द्वारा सामान ढोया जाता है | और आर्थिक विकाश में सहयोग किया जाता है|
अतः देश की औधोगिक उन्नति व्यापार और कृषि सभी के विकास में सडको का महत्वपूर्ण योगदान है|

2.     भारत में जल विधुत पर एक नोट्स लिखे ?

उत्तर – देश में विधुत के दो रूप अधिक प्रचलित है –
क.   ताप विधुत
ख.  जल विधुत
भारत में पहला जल विधुत शक्ति गृह 1897 में दार्जिलिंग में स्थापित किया है | जिसकी उत्पादन क्षमता 20 किलोवाट की थी 
तदप्रांत 1903 में कर्नाटक में कावेरी नदी के जल प्रपात शिवा समुन्द्रम पर 49,200 किलो वाट शक्ति का जल विधुत संयंत्र लगाया गया | उसके बाद देश के विभिन्न भागो में जल विधुत केंद्र स्थापित होते रहे है | 1951 – 1956 वे प्रथम पंचवर्षीय योजना काल में देश 1061 मेगावाट जल विधुत उत्पादित करता था | इस दौरान हीराकुंड , भाखड़ा नागल कोयना , रिहन्द , दामोदर घाटी चम्बल और तुंगभद्रा परियोजना की स्थापना से जल विधुत उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई | द्रितीय पंचवर्षीय योजना में विधुत का उत्पादन 3420 मेगावाट हो गया | इसके बाद द्रितीय , चौथी , पांचवी , छठी , सातवी , आठवी , नौवी और दसवी परियोजनाओं में जल विधुत के उत्पादन में आशातीत प्रगति हुई | देश में दशवी परियोजना काल में 28,860  मेगावाट जल विधुत उत्पादित की गई थी | देश में दक्षिणी भारत 42% पूर्वी भारत 7% उत्तर पूर्व भारत 1% पशिचमी भारत 15% और उत्तरी भारत 35% जल विधुत का योगदान करते है |

3.     भारत के लौह एवं इस्पात उधोग के विकास एवं वितरण का वर्णन करे ?

उत्तर – उधोगो के तात्पर्य के उधोगो के केंद्रीकरण से है | अर्थात जब किसी विशेष सुविधाओं के उपलब्ध होने पर किन्ही विशेष स्थानों पर उधोग धंधे अधिक विकसित हो जाते है |

क.   कच्चा माल की उपलब्धता :- लौह इस्पात उधोग में कोयला मैगनीज तथा अयस्क का उधोग बहुत भारी मात्रा में होता है | जिनसे निर्माण की प्रक्रिया में भार कम हो जाता है | हमारे देश में लौह – इस्पात उधोग कच्चे माल के क्षेत्र झारखण्ड पश्चिम बंगाल , उड़ीसा आदि में स्थित है |

ख.  शक्ति के साधन :- सभी आधुनिक उधोग किसी न किसी शक्ति के साधन पर आधारित है लोहा तथा इस्पात के कारखाने जो की शक्ति के साधन के रूप में भारी मात्रा में कोकिंग कोयले पर निर्भर है |

ग.    परिवहन के साधन :- प्र्त्यर्क उधोग में कच्चे माल की आपूर्ति के सरित के कारखाने तथा निर्मित वस्तुओ को कारखानों से बाजार या उपभोग केंद्र तल लाने ले जाने के लिए सस्ते और सक्षम परिवहन की आवश्यकता होती है | अतः उधोगो का विकास उन्ही स्थानों पर हुआ है , जहां यातायात की पर्याप्त सुविधाएँ विधमान है |

घ.    सस्ती भूमि तथा स्वच्छ जल की उपलब्धता :- लोहा एवं इस्पात के कारखानों में विशाल और भरी मशीनों का प्रयोग किया जाता है | जिनके लिए अधिक भूमि एवं भरी मात्रा में स्वच्छ जल की आवश्यकता पड़ती है | भारत में अधिकांश लौह – इस्पात केंद्र नदियों के किनारे स्थित है | लोहा को ठंडा करने , गैस की धुलाई करने , वाष्प बनाने आदि कार्यो में अधिक जल की आवश्यकता पडती है |

ङ.   पूंजी की उपलब्धता :- लौह – इस्पात उधोग में भारी मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होती है | भारत में पूंजी उधोग के स्थानीय करण की एक निर्णायक तत्व माना जाता है |

च.    बाजार :- वस्तुएं सदैव बाजार के लिए निर्मित की जाती है | अतः बाजार तक सुगम पहुंच लौह – इस्पात उधोग की स्थिति और आकार का महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व है |

4.     भारत की जनसंख्या के व्यावसायिक संघटन का विवरण दे ?

उत्तर – जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक निम्नलिखित है जो इस प्रकार से है –

क.   ऊँचाई :- बढती हुई उंचाई के साथ वायु दाब और आक्सीजन की मात्रा में होने वाली कमी से जनसंख्या वितरण और घनत्व में निश्चित रूप  से कमी आती है | हिमालय पर्वतीय क्षेत्रो में 5500 मीटर की उंचाई से ऊपर बहुत ही कम जनसंख्या स्थाई रूप से रहती है |

ख.  उच्चावच :- तीव्र ढाल और विषम या उबड –खाबड़ धरातल आवागमन और कृषि करने की सम्भावनाओं को क्षीण कर मानव बसाव को हतोत्साहित करता है | इसी कारण से पर्वतीय एवं मैदानी भागो के मिलने वाले स्थानों में जनसँख्या का घनत्व भुत ही कम देखने को मिलता है | मैदानी भागो में परिवहन के सभी साधनों के उन्नत अवस्था में होने के कारण जनसंख्या का सघन वुतार्ण मिलता है |

ग.    नदिया :- नदियों के संगम स्थल और नौपरिवहन योग्य नदियों के तटीय क्षेत्र घनी आबादी से युक्त होते है | जबकि नदियों के बाढ़ ग्रस्त किनारे मानव ब्स्सव को प्रतिबंधित है |

घ.    जलवायु  :- उल्लेखनीय है की अत्याधिक सहित , उष्ण , आर्द्र और शुष्क जल वायु निश्चित रूप से जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करती है | भारत में लदाख जैसे सहित स्थल और धार मरुस्थल जैसे उष्ण और शुष्क स्थल प्रतिकूल जलवायु के कारण ही विरल बसे हुए है |

ङ.   खनिज और ऊर्जा संसाधन :- खनिज और ऊर्जा संसाधनो की उपलब्धियों वाले स्थानों पर भी जनसंख्या का वितरण सघन देखने को मिलता है | पश्चिम बंगाल झारखंड , उड़ीसा , मध्य प्रदेश , राज्यों में जनसंख्या का सघन बसाव कोयला  क्षेत्रो एवं सम्बन्धित उधोगो की अवस्थित वाले क्षेत्रो में है | छोटा – नागपुर के पठार पर जनसंख्या का घना बसाव विभिन्न प्रकार के खनिज की उपलब्धियों के कारण ही है |

च.    औधोगिक विकास :- जिन स्थानों पर उधोग स्थापित हो जते है | वहां जनसंख्या घनत्व ही बढ़ जाता है | मुंबई कोलकता आदि इसके उदाहरण है | यहाँ भिन्न व्यवसायों के उन्नत दिशा में होने के कारण आस – पास के क्षेत्रो से भी लोग आकर रहने लगे है |

5.     नगर बहुप्रकार्यात्मकता होते है क्यों ?

उत्तर – अपनी केन्द्रीय भूमिका के अतिरिक्त अनेक शहर और नगर विशेशिकृत सेवाओं का निष्पादन करते है | कुछ शहरों और नगरो को कुछ निश्चित प्रकार्यों की विशिष्टता क्रियाओं उत्पादनों आथवा सेवाओं के लिए माना जाता है | फिर भी प्रत्येक शहर अनेक प्रकार्य करता है | प्रमुख आथवा विशेसिकृत प्रकार्यों के आधार पर भारतीय नगरो के मोटे तौर पर निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है |

क.   परिवहन नगर :- ये वहन नगर जो मुख्यतः आयात और निर्यात कार्यो में संलगन है | जैसे – कांडला , कोच्ची , कोझीकोड आदि |

ख.  वाणिज्यिक नगर :- व्यापार और वाणिज्यिक में विशिष्ट प्राप्त अह्ह्रो और नगरो को इस वर्ग में रखा जाता है |

ग.    खनन नगर :- ये नगर खनिज क्षेत्रो के रूप में विकसित हुए है | जैसे – झरिया , डिगबोई , आदि |

घ.    गैरिसन छावनी नगर :- इन नगरो का उदय गैरिसन नगरो के रूप में हुआ जैसे – अंबाला , जालंधर , महू , उधमपुर आदि |

ङ.   शैक्शील नगर :- मुख्य नगरो में से कुछ नगर शिक्षा केन्द्रों के रूप में विकसित हुए | जैसे – वाराणसी आदि|

6.     भारत में धान के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन करे ?

उत्तर – भारत चीन के बाद विश्व का दुसरा बड़ा धान उत्पादक देश है | धान की खेती भारत की कुल कृषि – भूमि के एक चौथाई भाग में की जाती है | यह देश के तीन – चौथाई लोगो का प्रमुख खाधान्न है | धान उष्ण एवं आर्द्र जलवायु की फसल है | इसे बोते समय 20 डिग्री तथा पकते समय 27 डिग्री ग्रेड तापमान आवश्यकता है | धान के खेत में कई महीनो तक पानी भरा रहना आवश्यक है | इसकी खेती के लिए 75 से 200 सेमी. वर्षा आदर्श है| कम वर्षा वाले क्षेत्रो में सिंचाई की आवश्यकता रहती है | धान की खेती केव लिए केवल या चिकनी मिटटी उपयुक्त होती है |
पहाड़ी दालो पर सीढ़ीनुमा खेत बनाकर घान की खेती होती है | घान की रोपनी कटाई और चावल की तैयारी में अधिक मानव की श्रम की आवश्यकता है | धान की खेती भारत में प्रायः सभी भागो में की जाती है |परन्तु इसका प्रधान उत्पादक क्षेत्र देश का पूर्वी भाग है | गंगा का मध्यवर्ती या निचला मैदान असम घाटी तथा पूर्वी तटीय प्रदेश और डेल्टा में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है | देश का 90 % चावल पश्चिम बंगाल , आंध्रप्रदेश , बिहार , उत्तर प्रेदश , महाराष्ट्र , तमिलनाडू , उड़ीसा , असम , केरल , कर्नाटक , मध्य प्रदेश , और छतीसगढ़ से प्राप्त होता है | इन सभी क्षेत्रो में चावल उत्पादन की उपयुक्त भौगोलिक  दशाए पाए जाते है |

7.     उधोगो के स्थानीयकरण के कारको का वर्णन करे ?

उत्तर – उधोगो की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कुछ कारक निम्न है –

क.   कच्चा माल :- सभी उधोगो में कच्चा माल का प्रयोग होता है | जिसे सस्ते दर पर उपलब्ध होना चाहिए | भरी वजन सस्ते मूल्य एवं भार ह्रास मूलक कच्चा माल पर आधारित उधोग कच्चा – माल के स्रोत के समीप ही स्थित होते है | जैसे – लोहा , इस्पात , सीमेंट और चीनी उधोग |

ख.  बाजार :- उधोगो से उत्पादित माल की मांग और वहां के निवासियों की क्रियाशक्ति को बाजार कहा जाता है| यूरोप , उत्तरी अमेरिका , जापान और आस्ट्रिलेया वैश्विक बाजार है |

ग.    श्रम :- उधोगो की अवस्थिति के लिए कुशल एवं अकुशल श्रमिक की आवश्यकता है , मुंबई और अहमदाबाद के सूती वस्त्र उधोग मुख्यतः बिहार और उत्तर प्रदेश से आये श्रमिको पर आधारित है ?

घ.    ऊर्जा के स्रोत :- जिन उधोगो में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है | वे ऊर्जा के स्रोतों के समीप ही लगाये जाते है | जैसे पीट्सबर्ग और जमशेदपुर में लोहा इस्पात उधोग |

ङ.   जल :- सूती वस्त्र उधोग में कपड़ो की धुलाई , रंगाई आदि के लिए तथा लोहा इस्पात उधोग में प्रक्रमण भाप निर्माण और लोहे को ठंडा करने के लिए जल आवश्यक है | अतः इनकी स्थापना जल स्रोत के समीप ही होती है|

8.     भारत में सिंचाई की आवश्यकता क्यों है ?

उत्तर – भारत एक कृषि प्रधान देश है | यहाँ की जलवायु मानसूनी है | अतः यहाँ कृषि की सफलता बहुत हद तक सिंचाई की समुचित व्यवस्था पर निर्भर है | इसी महत्व को स्वीकार  करते हुए कहा गया है | की भारत में पानी सोना है | भारत में सिंचाई का महत्व और आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है –

क.   अनिश्चित व अनियमित वर्षा :- मानसून द्वारा वर्षा का समय पर होना अनिश्चित है , जिससे उचित रूप में कृषि – कार्य सम्पन्न नहीं हो पाता राजस्थान पंजाब हरियाण आदि  में वर्षा होगी ही ऐसा कहना मुश्किल है |

ख.  वर्षा का आसमान वितरण :- एक और मेघालय में कही  1000 CM वार्षिक वर्षा होती है तो दूसरी ओर राजस्थान के कुछ हिस्सों में 10 cm ही वार्षिक वर्षा हो पाती है |

ग.    वर्षा का जल्द समाप्त हो जाना :- भारत में वर्षा का ख़ास ऋतू है | जो अल्पकालीन है | जब फसले तैयारी पर आई हुई रहती है तब वर्षा एकाएक समाप्त हो जाती है |

घ.    वर्षा का मूसलाधार होना :- मूसलाधार वर्षा कृषि के लिए हितकर नहीं है | इससे वर्षा जल भूमि में प्रवेश नहीं कर्ता और ऊपर ही ऊपर बह जाता है |

ङ.   जाड़े में वर्षा का आभाव :- भारतीय वर्षा ग्रीष्म कालीन है | शीतकाल में यहाँ वर्षा का आभाव सा रहता है | अतः जाड़े की फसले जैसे गेहूं आदि के लिए सिंचाई आवश्यक है |

9.     हरित क्रान्ति की व्याख्या करे ?

उत्तर – भारत में सघन जनसंख्या तथा उसकी तीव्र और समय – समय पर खाधानो के कमी को देखते हुए सन 1967 के बाद अन्न – उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि करने का उद्देश्य बनाया गया | की परिपूर्ति हेतु कृषि विकास के लिए जल उर्बरक तथा बीजो पर आधारित कार्यक्रम बनाया है | इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन में कृषि उपज के भरी वृद्धि हुई | इसे हरित क्रांति के नाम से पुकारा जाता है | हरित क्रांति की सबसे अधिक उल्लेखनीय उपलब्धी खाधानो के उत्पादन और उत्पादकता में काफी वृद्धि है | खाधानो का उत्पादन 1965 – 66 में 7.2 करोड़ टन था जो 2001 में बढ़कर 19.8 करोड़ टन हो गया | आनाज और ज्वार – बाजरा के उत्पादन में सबसे अधिक वृद्धि 197 % की थी गेंहू के उत्पादन में सार्वधिक वृद्धि 6 गुना से भी आधिक दर्ज की गई | 1965 – 66 में गेंहू का उत्पादन 1.04 करोड़ टन था जो 2001 में 6.88 करोड़ टन हो गया | चावल के उत्पादन में कई गुणा वृद्धि हुई |

10.   कार्यो के आधार पर शरो का वर्गीकरण करे ?

उत्तर – आज कल कई नए कार्य जैसे मनोरंजनात्मक यातायात , खनन निर्माण आवासीय तथा सबसे नवीन सुचना प्रौधोगिकी आदि कुछ विशिष्ट नगरो में सम्पन्न होते है | प्रकार्यों के आधार पर नगरो एवं शहरो का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है –

क.   प्रशासनिक नगर :- राष्ट्र की राजधानियां जहां पर केन्द्रीय सरकार के प्रसासनिक कार्यालय होते है उन्हें प्रसासनिक नगर कहा जाता है | जैसे नई दिल्ली , केनबेरा , बीजिंग , आदि

ख.  व्यापारिक एवं व्यवसायिक नगर :- कृषि बाजार कसबे जैसे विनिपेग एवं कंसास नगर बैंकिंग एवं वितीय कार्य करने वाले नगर जैसे फ्रैकफर्ट एवं समसटर्दम विशाल अंतदेशीय केंद्र जैसे मेनचेस्टर एवं सेंट लुईस एवं परिवहन के केंद्र जैसे लाहौर , बगदाद एवं आगरा व्यापारिक केंद्र रहे है |

ग.    सांस्कृतिक नगर :- तीर्थ स्थान जैसे जैरुसलम मक्का जगन्नाथ पूरी एवं बनारस आदि सांस्कृतिक नगर है | धार्मिक दृष्कों से इनका बहुत महत्व है | इसके अतिरिक्त जो कार्य नगर करते है | उनमे स्वास्थ्य एवं मनोरंजन एवं पंजी औधोगिक एवं जमशेदपुर खनन ब्रोकन हिल एवं घनबाद एवं परिवहन सिंगापूर एवं मुग़ल सराय आदि सम्मिलित किए जाते है |

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